Sunday, August 14, 2016

अग्रहरि जाति अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल क्यों नहीं?

तत्कालीन केंद्रीय युवा अग्रहरि समाज के अध्यक्ष मिर्जापुर निवासी श्री रमेश जी के अग्रहरी जाति को अन्य पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित करने हेतु प्रार्थना पत्र के संदर्भ में केंद्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के सम्मुख हम लखनऊ में थे । काश ! उस समय हमारे पास शेरिंग , नेस्फील्डक्रूक द्वारा लिखित पुस्तके  उपलब्ध होती तो हम अन्य पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित हो गए होते । मैं तभी से इन लेखकों की पुस्तको की खोज में रहा । इस समय अमेरिका में हूं और इंटरनेट में मुझे इन पुस्तकों को पढ़ने का अवसर मेरे पुत्र डॉक्टर होमार्जुन अग्रहरी ने दिया । 1885 में प्रकाशित brief review of the caste system of north-westernprovinces and Oudh नामक इस पुस्तक के लेखक  स्कूल इंस्पेक्टर John Collins  Nesfield ने इस पुस्तक के पैरा - 85 में दूसर, अग्रहरि,   अग्रवाल, बोहरा और खत्री जातियों को  उत्तरोत्तर उच्च सामाजिक स्तर का इसलिए बताया है क्योंकि यह सर्वाधिक धनाढ्य हैं । पैरा  86 में यह लिखते है:-“Agrahari and Agrawal must have been originally one -- sections of one and same caste......... आगे लिखते हैं:- Agrawala as a rule is a wealthy and prosperous caste”. यह पढ़कर कोई आयोग बिना अग्रवालों को पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित किए अग्रहरी को कैसे शामिल करेगा?1872 में प्रकाशित पुस्तक "hindu tribe and caste as represented in Benaras " के लेखक M.A. Sherring ने बनारस के अग्रवालों के प्रमुख बाबू हरिश्चंद्र के माध्यम से पृष्ठ 228 में लिखा है कि उनकी जाति के बहुत से लोग अग्रोहा पर शहाबुद्दीन के आक्रमण में  मार दिए गए।  हमारे पूर्वज बचकर दिल्ली के निकट लखनौटी नामक गांव में रहे । इसी पुस्तक के पृष्ठ 286 में अग्रवालों के साढे 17 गोत्रों का उल्लेख है ।
1896 में प्रकाशित "the tribes and castes of the north - western provinces and Oudh" नामक पुस्तक के लेखक william crooke ने इस पुस्तक के पृष्ठ 14 से 26 तक अग्रवाल जाति का विधिवत वर्णन किया है । वह उनके व्यवसाय के बारे में लिखते हैं 'the agrawala are one of the most respectable and enterprising of the mercantile tribes in the province'  इन्होंने अग्रवाल जाति का 1891 की जनगणना के आधार पर 49 जिलों में उनकी उपस्थिति दर्शाई है परंतु बहुत अधिक संख्या वाले तत्कालीन जिले हैं --सहारनपुर , मुजफ्फरनगरमेरठ, अलीगढ़ , बुलंदशहरमथुराआगरा, मुरादाबाद  और बिजनौर जो कि अगरोहा/ दिल्ली की पूर्वी सीमा से लगे हैं। इसी पुस्तक में अग्रहरि जाति का पृष्ठ 33 से 35 तक वर्णन है । इनके व्यवसाय के बारे में लिखा गया है “They are principally dealers in provisions (khichadi farosh)” यह महिलाओं को दुकान पर कार्य करने देते थे । अग्रहरियों की वितरण तालिका के अनुसार ये  फतेहपुरबांदाइलाहाबादबनारस, मिर्जापुरजौनपुरगोरखपुर, बस्ती, आजमगढ़रायबरेलीफैजाबाद, सुल्तानपुरप्रतापगढ़में बहुतायत में पाए गए। यह सभी जिले तत्कालीन फतेहपुर जिले के खजुहा से पूर्वी क्षेत्र में हैं।




1891 की जनगणना के आधार पर अग्रवाल और अग्रहरि की जनसंख्या के तत्कालीन जिलागत वितरण का प्रदर्शन मानचित्र में दिखाया गया है।  उपरोक्त लेखकों के द्वारा प्रदत्त जानकारी का सूक्ष्म विश्लेषण करने पर पाया जाता है कि अग्रहरी और अग्रवाल आर्थिक स्थिति और रीति रिवाजों के आधार पर एक ही स्रोत से नहीं बने ।इन्हीं लेखकों ने अग्रहरी और अग्रवाल शब्द के आधार पर उनका उदगम अग्रोहा या आगरा बताया है । अग्रवाल अब अगरोहा से संबंधित मानते हैं । क्या अग्रहरियों का संबंध आगरा से है? इस संबंध की खोज में आइए आगरा के इतिहास पर दृष्टि डालें :-   
आगरा को 1526 में मुगल शासक बाबर ने राजधानी बनाया विरासत में मिली इस राजधानी का उपयोग बाबर के वंशजों हुमायूं, अकबरजहांगीर और शाहजहां ने किया. शाहजहां ने दिल्ली में शाहजहानाबाद नामक नगर की स्थापना की. मुगल सम्राट शाहजहां के चार लड़के थे दाराशिकोह, शाह शुजा , औरंगजेब और मुराद बख्श। शाहजहां ने 1633 में दारा शिकोह को युवराज बनाया । स्पष्ट है कि वह अपने बड़े पुत्र दारा शिकोह को उत्तराधिकारी के रुप में देखता था जो दारा के अन्य भाइयों को स्वीकार नहीं था। औरंगजेब और मुराद तो उसके विरुद्ध इस्लाम विरोधी होने का नारा लगाते थे.  6 सितंबर 1657 को शाहजहां बीमार पड़ा । उसके बीमार पड़ने पर उसके पुत्रों के बीच उत्तराधिकार  के लिए संघर्ष प्रारंभ हुआ । सर्वप्रथम शाह शुजा (बंगाल, बिहार और उड़ीसा का सूबेदार) ने बंगाल में अपने को बादशाह घोषित किया तथा बंगाल से आगरा की ओर सिंहासन पर कब्जा करने के लिए चल पड़ा । 14 फरवरी 1658 को बनारस के निकट बहादुरपुर में दाराशिकोह के बड़े पुत्र सुलेमान शिकोह और शाह शुजा के बीच युद्ध हुआ जिसमें शाह शुजा पराजित हुआ और बंगाल की ओर भाग गया । संघर्ष के इसी क्रम में औरंगजेब और मुराद बख्श ने मिलकर आगरा पर चढ़ाई की । दारा शिकोह और इनके बीच आगरा से 13 किलोमीटर दूर सामूगढ़ में 30 मई 1658 को युद्ध हुआ। दारा के साथ खडे मीर जुमला ने राजपूतों के सहयोगी के रुप में युद्ध करने से मना कर दिया फल स्वरुप राजपूत सेनाओं का भीषण संघार हुआ । दाराशिकोह अपना हाथी छोड़कर भाग गया । दाराशिकोह के हाथी का खाली हौदा देखकर दाराशिकोह की सेना के बड़े हिस्से ने औरंगजेब के सम्मुख सम्मुख आत्म समर्पण कर दिया । 08 जून 1658 को औरंगजेब ने दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा कर लिया । दारा शिकोह को अजमेर के निकट देवराई में मार्च 1659 को औरंगजेब ने पुनः हराया तथा बाद में पकड़वाकर 10 सितंबर 1659 को उसकी हत्या कर दी । 08 जून 1658 में औरंगजेब के दिल्ली तख्त पर काबिज होने के बाद शाह शुजा ने अपने अधिकारियों से कहा कि वह शाहजहां की सुरक्षा करेगा और पुरानी सरकार को बहाल करेगा । उसे आशा थी कि आगरा के रास्ते में बादशाह के पक्षधर लोगों की सेवाएं उसे प्राप्त होगी । वह दरियाई मार्ग से आगरा की ओर चल पड़ा । रोहतास चुनार और इलाहाबाद में बहुत से दारा समर्थक सैनिक उसकी सेना में शामिल हो गए  इस आगमन की सूचना मिलने पर औरंगजेब ने आगरा से एक बड़ी सेना पूर्व की ओर रवाना कर दी । 05 जनवरी 1659 को खजुवा में भीषण युद्ध हुआ । शाह शुजा भाग गया परंतु औरंगजेब ने मीर जुमला को उसे नियंत्रित करने हेतु उसके पीछे लगा दिया । शाह शुजा सैनिक बल इकट्ठा करता तथा मीर जुमला से युद्ध करता हुआ टाण्डा पहुंचा । 12 अप्रैल 1659 को वह निराश होकर टांडा से वापस ढाका रवाना हुआ । ढाका से 6 मई 1659 को वह अपने सारे परिवार के साथ अराकान चला गया । 09 मई 1659 को बंगाल पर औरंगजेब का अधिकार हो गया । खजुआ के इस युद्ध में रोहतास, चुनार, इलाहाबाद, फतेहपुर, रायबरेली, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़ के इर्द-गिर्द के सैनिकों द्वारा अपने प्राणों की आहुति दी गई थी ।  इनके परिवार जो इनकी प्रतीक्षा कर रहे थे उनका कोई संरक्षण दाता नहीं था 
इन बेसहारा परिवारों ने अपना पालन पोषण कैसे किया होगा, यह खोज का विषय है ! हमें एक ऐसी जाति के इतिहास में जाना होगा जो मूल रुप से भारत अथवा नेपाल में खजुआ के पूर्वी जिलों में बहुतायत से पाई जाती हो तथा खजुआ के पश्चिमी जिलों में नाम मात्र को हो । इनके मूल निवास ऐसे बीहड़ इलाकों में रहे हो जहां औरंगजेब की पहुंच न के बराबर रही हो जैसे जमुना के दक्षिण मुख्य सड़क से दूर. इस ग्रुप में अनेक कुल देवता हों और इनको सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त हो। इनके हाथ का पानी उच्च जातियां पीती हो । अपने बच्चों की शादी राजपूतों के तौर तरीकों से करते हो जैसे बारात के रुप में चढ़ाई करना तथा कन्या पक्ष से पैर पुजवाना पैपूजी कराना । यज्ञोपवीत धारण करते हों । बनारस और प्रयाग राज की भूमि से जुड़े होने के कारण मांस मदिरा का प्रयोग न करते रहे हों । विभिन्न वर्गों से आने के कारण शादी विवाह में कन्या देने के लिए मान दान परिवारों का चयन करते हों। अधिकांश लोग पूर्ण रूप से भूमिहीन रहे हों
उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर क्या यह ग्रुप आगरा हारे = अग्रहरि के रूप में विकसित हुआ होगा ? इस बात पर मैं आपसे और खोज करने का निवेदन करता हूँ. मैं आपसे इस बात का निवेदन भी करता हूँ की “माहराज अग्रसेन की जय” जैसे नारों से बच के रहें और नेसफ़ील्ड की भ्रामकता का विरोध करें. यदि हम और खोज करें तो हम संभवतः अग्रहरि जाति का सच्चा इतिहास जान सकेंगे और पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित किये जाने का उपक्रम पुनः प्रारंभ कर सकेंगे.
ओम प्रकाश ' प्रवक्ता ' फतेहपुर 
अमेरिका (001-4692158475)
भारत (09450260129)

(ईमेल-omprakashftp.dsc@gmail.com)

References: 



  1. https://archive.org/details/BriefViewOfTheCasteSystemOfTheNorth-westernProvincesAndOudh
  2. https://archive.org/details/hindutribesandc00shergoog
  3. http://madhukidiary.com/sons-of-shah-jahan-in-a-battle-for-power/