Sunday, August 14, 2016

अग्रहरि जाति अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल क्यों नहीं?

तत्कालीन केंद्रीय युवा अग्रहरि समाज के अध्यक्ष मिर्जापुर निवासी श्री रमेश जी के अग्रहरी जाति को अन्य पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित करने हेतु प्रार्थना पत्र के संदर्भ में केंद्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के सम्मुख हम लखनऊ में थे । काश ! उस समय हमारे पास शेरिंग , नेस्फील्डक्रूक द्वारा लिखित पुस्तके  उपलब्ध होती तो हम अन्य पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित हो गए होते । मैं तभी से इन लेखकों की पुस्तको की खोज में रहा । इस समय अमेरिका में हूं और इंटरनेट में मुझे इन पुस्तकों को पढ़ने का अवसर मेरे पुत्र डॉक्टर होमार्जुन अग्रहरी ने दिया । 1885 में प्रकाशित brief review of the caste system of north-westernprovinces and Oudh नामक इस पुस्तक के लेखक  स्कूल इंस्पेक्टर John Collins  Nesfield ने इस पुस्तक के पैरा - 85 में दूसर, अग्रहरि,   अग्रवाल, बोहरा और खत्री जातियों को  उत्तरोत्तर उच्च सामाजिक स्तर का इसलिए बताया है क्योंकि यह सर्वाधिक धनाढ्य हैं । पैरा  86 में यह लिखते है:-“Agrahari and Agrawal must have been originally one -- sections of one and same caste......... आगे लिखते हैं:- Agrawala as a rule is a wealthy and prosperous caste”. यह पढ़कर कोई आयोग बिना अग्रवालों को पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित किए अग्रहरी को कैसे शामिल करेगा?1872 में प्रकाशित पुस्तक "hindu tribe and caste as represented in Benaras " के लेखक M.A. Sherring ने बनारस के अग्रवालों के प्रमुख बाबू हरिश्चंद्र के माध्यम से पृष्ठ 228 में लिखा है कि उनकी जाति के बहुत से लोग अग्रोहा पर शहाबुद्दीन के आक्रमण में  मार दिए गए।  हमारे पूर्वज बचकर दिल्ली के निकट लखनौटी नामक गांव में रहे । इसी पुस्तक के पृष्ठ 286 में अग्रवालों के साढे 17 गोत्रों का उल्लेख है ।
1896 में प्रकाशित "the tribes and castes of the north - western provinces and Oudh" नामक पुस्तक के लेखक william crooke ने इस पुस्तक के पृष्ठ 14 से 26 तक अग्रवाल जाति का विधिवत वर्णन किया है । वह उनके व्यवसाय के बारे में लिखते हैं 'the agrawala are one of the most respectable and enterprising of the mercantile tribes in the province'  इन्होंने अग्रवाल जाति का 1891 की जनगणना के आधार पर 49 जिलों में उनकी उपस्थिति दर्शाई है परंतु बहुत अधिक संख्या वाले तत्कालीन जिले हैं --सहारनपुर , मुजफ्फरनगरमेरठ, अलीगढ़ , बुलंदशहरमथुराआगरा, मुरादाबाद  और बिजनौर जो कि अगरोहा/ दिल्ली की पूर्वी सीमा से लगे हैं। इसी पुस्तक में अग्रहरि जाति का पृष्ठ 33 से 35 तक वर्णन है । इनके व्यवसाय के बारे में लिखा गया है “They are principally dealers in provisions (khichadi farosh)” यह महिलाओं को दुकान पर कार्य करने देते थे । अग्रहरियों की वितरण तालिका के अनुसार ये  फतेहपुरबांदाइलाहाबादबनारस, मिर्जापुरजौनपुरगोरखपुर, बस्ती, आजमगढ़रायबरेलीफैजाबाद, सुल्तानपुरप्रतापगढ़में बहुतायत में पाए गए। यह सभी जिले तत्कालीन फतेहपुर जिले के खजुहा से पूर्वी क्षेत्र में हैं।




1891 की जनगणना के आधार पर अग्रवाल और अग्रहरि की जनसंख्या के तत्कालीन जिलागत वितरण का प्रदर्शन मानचित्र में दिखाया गया है।  उपरोक्त लेखकों के द्वारा प्रदत्त जानकारी का सूक्ष्म विश्लेषण करने पर पाया जाता है कि अग्रहरी और अग्रवाल आर्थिक स्थिति और रीति रिवाजों के आधार पर एक ही स्रोत से नहीं बने ।इन्हीं लेखकों ने अग्रहरी और अग्रवाल शब्द के आधार पर उनका उदगम अग्रोहा या आगरा बताया है । अग्रवाल अब अगरोहा से संबंधित मानते हैं । क्या अग्रहरियों का संबंध आगरा से है? इस संबंध की खोज में आइए आगरा के इतिहास पर दृष्टि डालें :-   
आगरा को 1526 में मुगल शासक बाबर ने राजधानी बनाया विरासत में मिली इस राजधानी का उपयोग बाबर के वंशजों हुमायूं, अकबरजहांगीर और शाहजहां ने किया. शाहजहां ने दिल्ली में शाहजहानाबाद नामक नगर की स्थापना की. मुगल सम्राट शाहजहां के चार लड़के थे दाराशिकोह, शाह शुजा , औरंगजेब और मुराद बख्श। शाहजहां ने 1633 में दारा शिकोह को युवराज बनाया । स्पष्ट है कि वह अपने बड़े पुत्र दारा शिकोह को उत्तराधिकारी के रुप में देखता था जो दारा के अन्य भाइयों को स्वीकार नहीं था। औरंगजेब और मुराद तो उसके विरुद्ध इस्लाम विरोधी होने का नारा लगाते थे.  6 सितंबर 1657 को शाहजहां बीमार पड़ा । उसके बीमार पड़ने पर उसके पुत्रों के बीच उत्तराधिकार  के लिए संघर्ष प्रारंभ हुआ । सर्वप्रथम शाह शुजा (बंगाल, बिहार और उड़ीसा का सूबेदार) ने बंगाल में अपने को बादशाह घोषित किया तथा बंगाल से आगरा की ओर सिंहासन पर कब्जा करने के लिए चल पड़ा । 14 फरवरी 1658 को बनारस के निकट बहादुरपुर में दाराशिकोह के बड़े पुत्र सुलेमान शिकोह और शाह शुजा के बीच युद्ध हुआ जिसमें शाह शुजा पराजित हुआ और बंगाल की ओर भाग गया । संघर्ष के इसी क्रम में औरंगजेब और मुराद बख्श ने मिलकर आगरा पर चढ़ाई की । दारा शिकोह और इनके बीच आगरा से 13 किलोमीटर दूर सामूगढ़ में 30 मई 1658 को युद्ध हुआ। दारा के साथ खडे मीर जुमला ने राजपूतों के सहयोगी के रुप में युद्ध करने से मना कर दिया फल स्वरुप राजपूत सेनाओं का भीषण संघार हुआ । दाराशिकोह अपना हाथी छोड़कर भाग गया । दाराशिकोह के हाथी का खाली हौदा देखकर दाराशिकोह की सेना के बड़े हिस्से ने औरंगजेब के सम्मुख सम्मुख आत्म समर्पण कर दिया । 08 जून 1658 को औरंगजेब ने दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा कर लिया । दारा शिकोह को अजमेर के निकट देवराई में मार्च 1659 को औरंगजेब ने पुनः हराया तथा बाद में पकड़वाकर 10 सितंबर 1659 को उसकी हत्या कर दी । 08 जून 1658 में औरंगजेब के दिल्ली तख्त पर काबिज होने के बाद शाह शुजा ने अपने अधिकारियों से कहा कि वह शाहजहां की सुरक्षा करेगा और पुरानी सरकार को बहाल करेगा । उसे आशा थी कि आगरा के रास्ते में बादशाह के पक्षधर लोगों की सेवाएं उसे प्राप्त होगी । वह दरियाई मार्ग से आगरा की ओर चल पड़ा । रोहतास चुनार और इलाहाबाद में बहुत से दारा समर्थक सैनिक उसकी सेना में शामिल हो गए  इस आगमन की सूचना मिलने पर औरंगजेब ने आगरा से एक बड़ी सेना पूर्व की ओर रवाना कर दी । 05 जनवरी 1659 को खजुवा में भीषण युद्ध हुआ । शाह शुजा भाग गया परंतु औरंगजेब ने मीर जुमला को उसे नियंत्रित करने हेतु उसके पीछे लगा दिया । शाह शुजा सैनिक बल इकट्ठा करता तथा मीर जुमला से युद्ध करता हुआ टाण्डा पहुंचा । 12 अप्रैल 1659 को वह निराश होकर टांडा से वापस ढाका रवाना हुआ । ढाका से 6 मई 1659 को वह अपने सारे परिवार के साथ अराकान चला गया । 09 मई 1659 को बंगाल पर औरंगजेब का अधिकार हो गया । खजुआ के इस युद्ध में रोहतास, चुनार, इलाहाबाद, फतेहपुर, रायबरेली, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़ के इर्द-गिर्द के सैनिकों द्वारा अपने प्राणों की आहुति दी गई थी ।  इनके परिवार जो इनकी प्रतीक्षा कर रहे थे उनका कोई संरक्षण दाता नहीं था 
इन बेसहारा परिवारों ने अपना पालन पोषण कैसे किया होगा, यह खोज का विषय है ! हमें एक ऐसी जाति के इतिहास में जाना होगा जो मूल रुप से भारत अथवा नेपाल में खजुआ के पूर्वी जिलों में बहुतायत से पाई जाती हो तथा खजुआ के पश्चिमी जिलों में नाम मात्र को हो । इनके मूल निवास ऐसे बीहड़ इलाकों में रहे हो जहां औरंगजेब की पहुंच न के बराबर रही हो जैसे जमुना के दक्षिण मुख्य सड़क से दूर. इस ग्रुप में अनेक कुल देवता हों और इनको सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त हो। इनके हाथ का पानी उच्च जातियां पीती हो । अपने बच्चों की शादी राजपूतों के तौर तरीकों से करते हो जैसे बारात के रुप में चढ़ाई करना तथा कन्या पक्ष से पैर पुजवाना पैपूजी कराना । यज्ञोपवीत धारण करते हों । बनारस और प्रयाग राज की भूमि से जुड़े होने के कारण मांस मदिरा का प्रयोग न करते रहे हों । विभिन्न वर्गों से आने के कारण शादी विवाह में कन्या देने के लिए मान दान परिवारों का चयन करते हों। अधिकांश लोग पूर्ण रूप से भूमिहीन रहे हों
उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर क्या यह ग्रुप आगरा हारे = अग्रहरि के रूप में विकसित हुआ होगा ? इस बात पर मैं आपसे और खोज करने का निवेदन करता हूँ. मैं आपसे इस बात का निवेदन भी करता हूँ की “माहराज अग्रसेन की जय” जैसे नारों से बच के रहें और नेसफ़ील्ड की भ्रामकता का विरोध करें. यदि हम और खोज करें तो हम संभवतः अग्रहरि जाति का सच्चा इतिहास जान सकेंगे और पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित किये जाने का उपक्रम पुनः प्रारंभ कर सकेंगे.
ओम प्रकाश ' प्रवक्ता ' फतेहपुर 
अमेरिका (001-4692158475)
भारत (09450260129)

(ईमेल-omprakashftp.dsc@gmail.com)

References: 



  1. https://archive.org/details/BriefViewOfTheCasteSystemOfTheNorth-westernProvincesAndOudh
  2. https://archive.org/details/hindutribesandc00shergoog
  3. http://madhukidiary.com/sons-of-shah-jahan-in-a-battle-for-power/  

42 comments:

  1. ओमप्रकाश जी मैने श्री राजेश बनिया अग्रहरि जी बम्बई के फेसबुक ग्रूप" अग्रोहा पराशर समीति कुच्छल गोत्र " पर अग्रहरि और अग्रवाल समुदाय की भिन्नता पर टिप्पड़ी करते हुए लिखा भी था कि अग्रहरि समुदाय अग्रवाल समुदाय से पूर्णत: अलग है और अग्रहरि समुदाय का भी कोई गौरवमयी इतिहास अवश्य रहाहोगा बस जरूरत है उस पर खोज करने की तो उस ग्रूप के तमाम अग्रहरि भाइयों ने मेरा विरोध किया कि मै और मेरे जैसे लोगों के कारण ही दोनों समुदाय एक नहीं हो पा रहे हैं| आप का लेख पढ़कर लगा कि आप इस दिशा मे प्रयास करेंगे और समाज को उसका वास्तविक इतिहास जाननें के लिये प्रेरित करेंगे| धन्यवाद

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    1. अग्रहरि : स्वाभिमानी/ शूरवीर/ बलिदानी /शहीदों की संतान हैं.......... हम भारतीय संस्कृति के बचाने का प्रयास करने वाले शूरवीरों, स्वाभिमानी योद्धाओं की संतान है.. हमारे स्वाभिमानी पूर्वजों ने केवल 23000 घुड्सवारों के साथ औरंगजेब की 90000 घुड़सवारों के सामने हिंदुत्व की रक्षा के संकल्प के साथ युद्ध में कूद पड़े... हिंदुत्व के विचार के वशीभूत औरंगजेब की सेना में सम्मिलित राजा जयसिंह ने आधी रात को विद्रोह करके 90000 घुड़सवारों की सेना को नष्ट करके आधा कर दिया तथा खजुवा से वापस राजस्थान चला गया.... 5 जनवरी 1659 को खजुआ में युद्ध हुआ..... हमारे शूरवीर पूर्वजों ने औरंगजेब के 11000 घुड़सवार योद्धाओं को मौत के घाट उतार दिया.... उस युद्ध में आगरा जीतने के उद्देश्य हमारा नेतृत्व कर रहा ढाका से आया औरंगजेब का बड़ा भाई शाह-शुजा अनायास भाग गया अन्यथा हमारे पूर्वज आगरा के शासक होते... 9000 रण बाङकुरे शहीद हुए... 10000 योद्धा शाह-शूजा के साथ मैदान छोड़ कर वापस गए.... 4000 शूरवीरों का इतिहास नहीं मिलता.... संभावना है यह घायल होकर कहीं छुप गए हों और यह भी अग्रहरी के रूप में हमारे पूर्वज हों..... हमें अपने पूर्वजों पर गर्व होना चाहिए क्योंकि वे हिंदुत्व को बचाने के लिए वीरगति को प्राप्त हुए.... उनके परिवार की महिलाओं पर हमें गर्व करना चाहिए जिन्होंने औरंगजेब की 25,000 घुड़सवारों की सेना, जो शाह- शुजा से हमें बचाकर हमारा पालन पोषण किया और हमें ऐसे संस्कार दिए कि हम विभिन्न जिलों के ग्रामीण अंचलों से विगत100-200 वर्षों के अंतराल में भारत के समस्त बड़े शहरों (दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई, चेन्नई, जयपुर, बंगलोर आदि) में पहुंच गए और आज सम्मानजनक की स्थिति परआसीन हो कर गौरवान्वित हो रहे हैं.... विशेष जानकारी के लिए 'औरंगजेब का इतिहास' वॉल्यूम 2 मे खजुआ का युद्ध नामक चैप्टर पढ़िए.., किसी लेखक ने सत्य कहा है कि फतेहपुरिया अग्रहरी फौजदार है...... क्रमश: ओम प्रकाश 'प्रवक्ता' फतेहपुर

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  2. अग्रहरि : स्वाभिमानी/ शूरवीर/ बलिदानी /शहीदों की संतान हैं.......... हम भारतीय संस्कृति के बचाने का प्रयास करने वाले शूरवीरों, स्वाभिमानी योद्धाओं की संतान है.. हमारे स्वाभिमानी पूर्वजों ने केवल 23000 घुड्सवारों के साथ औरंगजेब की 90000 घुड़सवारों के सामने हिंदुत्व की रक्षा के संकल्प के साथ युद्ध में कूद पड़े... हिंदुत्व के विचार के वशीभूत औरंगजेब की सेना में सम्मिलित राजा जयसिंह ने आधी रात को विद्रोह करके 90000 घुड़सवारों की सेना को नष्ट करके आधा कर दिया तथा खजुवा से वापस राजस्थान चला गया.... 5 जनवरी 1659 को खजुआ में युद्ध हुआ..... हमारे शूरवीर पूर्वजों ने औरंगजेब के 11000 घुड़सवार योद्धाओं को मौत के घाट उतार दिया.... उस युद्ध में आगरा जीतने के उद्देश्य हमारा नेतृत्व कर रहा ढाका से आया औरंगजेब का बड़ा भाई शाह-शुजा अनायास भाग गया अन्यथा हमारे पूर्वज आगरा के शासक होते... 9000 रण बाङकुरे शहीद हुए... 10000 योद्धा शाह-शूजा के साथ मैदान छोड़ कर वापस गए.... 4000 शूरवीरों का इतिहास नहीं मिलता.... संभावना है यह घायल होकर कहीं छुप गए हों और यह भी अग्रहरी के रूप में हमारे पूर्वज हों..... हमें अपने पूर्वजों पर गर्व होना चाहिए क्योंकि वे हिंदुत्व को बचाने के लिए वीरगति को प्राप्त हुए.... उनके परिवार की महिलाओं पर हमें गर्व करना चाहिए जिन्होंने औरंगजेब की 25,000 घुड़सवारों की सेना, जो शाह- शुजा से हमें बचाकर हमारा पालन पोषण किया और हमें ऐसे संस्कार दिए कि हम विभिन्न जिलों के ग्रामीण अंचलों से विगत100-200 वर्षों के अंतराल में भारत के समस्त बड़े शहरों (दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई, चेन्नई, जयपुर, बंगलोर आदि) में पहुंच गए और आज सम्मानजनक की स्थिति परआसीन हो कर गौरवान्वित हो रहे हैं.... विशेष जानकारी के लिए 'औरंगजेब का इतिहास' वॉल्यूम 2 मे खजुआ का युद्ध नामक चैप्टर पढ़िए.., किसी लेखक ने सत्य कहा है कि फतेहपुरिया अग्रहरी फौजदार है...... क्रमश: ओम प्रकाश 'प्रवक्ता' फतेहपुर

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    1. आदरणीय ओम प्रकाश प्रवक्ता जी बहुत अच्छी समाज द्रोह की भूमिका निभा रहे हो आपको यह पता नहीं है कि आगरा का पूर्व नाम अग्रपुर था

      जो कभी अग्रोहा राजधानी के अंतर्गत आता था
      और अगर पुर महाराजा अग्रसेन के नाम पर ही जाना जाता था

      हालांकि यह कहना कठिन है कि वहां भी अग्रवंशीओं का ही वर्चस्व रहा होगा लेकिन आप भूल गए हमारे समाज के इतिहासकारों ने आज से नहीं सैकड़ों वर्ष पूर्व अपनी अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है कि अग्रहरि कुच्छल गोत्रीय है महाराजा अग्रसेन जी के पुत्र कर्णचंद की शाखा से हैं जिन्होंने महर्षि कश्यप ऋषि को गुरु मानकर कुच्छल गोत्र का संकल्प लिया था

      आप जो समाज द्रोह की भूमिका निभा रहे हैं वह माफी योग्य नहीं

      ध्यान रहे समाज जागरूक हो चुका है आप जैसे समाज द्रोहीओं को समाज से बहिष्कार करने में देर नहीं लगेगी

      अग्रवंशी रघुवंश अग्रहरि

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  3. इतिहासकारो ने तोड मरोड़ के इतिहास को सबके समक्ष प्रस्तुत किया है... आगरा के पास निवासित जाति ही अग्रोहा से शहाबुद्दीन के आक्रमण पर ही भाग कर आयी थी| अपनी मूल जाति अग्रवाल तथा गोत्र कुच्छल से अलग होकर नवीन समाज की स्थापना की|और हम खुद को ही संबल बना ले इतना की हमें किसी वर्ग में शामिल करने की आवश्यकता ना हो, स्वार्थ की दौड़ में हम अपने मूल आधार को भूलते जा रहे हैं|आज हम अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं और स्वयं को श्रेष्ठ बताने के चक्कर में नये नये समाज की स्थापना करते जा रहे हैं|

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    1. अग्रोहा की संस्कृति 4000 वर्ष पूर्व नष्ट हो चुकी है. गौरी का अक्रमण 1192/1194 में हुआ इसलिए हमारा अग्रोहा से संबंध नहीं है

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    2. भैया यह सोशल मीडिया है सोशल मीडिया में किसी को पता नहीं है कि अग्रोहा से हमारा वास्तविकता क्या है

      इसलिए विरोध पर उतर आए हैं क्योंकि सोशल मीडिया स्वतंत्र है जिसको जो कहना है वह कह सकता

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    3. जय श्री अग्रसेन

      अग्रकुल के गोत्र

      माता लक्ष्मी की कृपा से श्री अग्रसेन के 18 पुत्र हुये। राजकुमार विभु उनमें सबसे बड़े थे। महर्षि गर्ग ने महाराजा अग्रसेन को 18 पुत्र के साथ 18 यज्ञ करने का संकल्प करवाया। माना जाता है कि यज्ञों में बैठे 18 गुरुओं के नाम पर ही अग्रवंश की स्थापना हुई । यज्ञों में पशुबलि दी जाती थी। प्रथम यज्ञ के पुरोहित स्वयं गर्ग ॠषि बने, राजकुमार विभु को दीक्षित कर उन्हें गर्ग गोत्र से मंत्रित किया। इसी प्रकार दूसरा यज्ञ गोभिल ॠषि ने करवाया और द्वितीय पुत्र को गोयल गोत्र दिया। तीसरा यज्ञ गौतम ॠषि ने गोइन गोत्र धारण करवाया, चौथे में वत्स ॠषि ने बंसल गोत्र, पाँचवे में कौशिक ॠषि ने कंसल गोत्र, छठे शांडिल्य ॠषि ने सिंघल गोत्र, सातवे में मंगल ॠषि ने मंगल गोत्र, आठवें में जैमिन ने जिंदल गोत्र, नवें में तांड्य ॠषि ने तिंगल गोत्र, दसवें में और्व ॠषि ने ऐरन गोत्र, ग्यारवें में धौम्य ॠषि ने धारण गोत्र, बारहवें में मुदगल ॠषि ने मन्दल गोत्र, तेरहवें में वसिष्ठ ॠषि ने बिंदल गोत्र, चौदहवें में मैत्रेय ॠषि ने मित्तल गोत्र, पंद्रहवें कश्यप ॠषि ने कुच्छल गोत्र दिया। 17 यज्ञ पूर्ण हो चुके थे। जिस समय 18 वें यज्ञ में जीवित पशुओं की बलि दी जा रही थी, महाराज अग्रसेन को उस दृश्य को देखकर घृणा उत्पन्न हो गई। उन्होंने यज्ञ को बीच में ही रोक दिया और कहा कि भविष्य में मेरे राज्य का कोई भी व्यक्ति यज्ञ में पशुबलि नहीं देगा, न पशु को मारेगा, न माँस खाएगा और राज्य का हर व्यक्ति प्राणीमात्र की रक्षा करेगा। इस घटना से प्रभावित होकर उन्होंने क्षत्रिय धर्म को अपना लिया। अठारवें यज्ञ में नगेन्द्र ॠषि द्वारा नांगल गोत्र से अभिमंत्रित किया।

      ॠषियों द्वारा प्रदत्त अठारह गोत्रों को महाराजा अग्रसेन के 18 पुत्रों के साथ महाराजा द्वारा बसायी 18 बस्तियों के निवासियों ने भी धारण कर लिया एक बस्ती के साथ प्रेम भाव बनाये रखने के लिए एक सर्वसम्मत निर्णय हुआ कि अपने पुत्र और पुत्री का विवाह अपनी बस्ती में नहीं दूसरी बस्ती में करेंगे। आगे चलकर यह व्यवस्था गोत्रों में बदल गई जो आज भी अग्रवाल समाज में प्रचलित है।

      अठारह गोत्र

      महाराज अग्रसेन के 18 पुत्र हुए, जिनके नाम पर वर्तमान में अग्रवालों के 18 गोत्र हैं। ये गोत्र निम्नलिखित हैं: -
      गोत्रों के नाम

      ऐरन

      बंसल

      बिंदल

      भंदल

      धारण

      गर्ग

      गोयल

      गोयन

      जिंदल

      कंसल

      कुच्छल

      मधुकुल

      मंगल

      मित्तल

      नागल

      सिंघल

      तायल

      तिंगल

      अग्रहरियों का गोत्र

      अग्रोहा मे आक्रमण एवं मुगलों के अत्याचार से बचने के लिए जो 96 कुच्छल गोत्रीय अग्रवाल परिवार ने अग्रोहा त्याग कर इधर-उधर बस गए थे, उन्होंने अपनी पहचान छिपाने के लिए अपना मूल गोत्र भी छिपा लिया, तथा सभी ने एक ही गोत्र "कश्यप" बतलाना शुरू किया। मूल गोत्र छिपाने के कारण ही ये "गुप्त" भी कहलाने लगे, जो अंग्रेजोँ के शासनकाल मे 'गुप्ता' हो गया। गुप्त जातीय इतिहास के पृष्ठ 187 में भी 18 वें क्रम मे छियानवे का गोत्र कश्यप दिया हुआ है। अग्रहरि समुदाय का मूल गोत्र "कुच्छल" है, जो कि महाराज अग्रसेन द्रवारा बनाए गए अठारह गोत्रो मे से एक है। "कुच्छल" गोत्र के रिषी कश्यप है तथा कर्ण देव गोत्र के प्रमुख देवता का नाम हैं। इसीलिए अग्रहरि महाराजा श्री अग्रसेन जी को सदैव अपना कुल पूर्वज मानते आए हैं

      कश्यप गोत्र

      प्राचीन वैदिक काल के महान ॠषियों में से एक ऋषि थे कश्यप ऋषि। हिंदु धर्म के ग्रंथों में कश्यप ऋषि के बारे में विस्तार पूर्वक उल्लेख प्राप्त होता है, वेदों, पुराणों तथा अन्य संहिताओं में भी यह नाम बहुत प्रयुक्त हुआ है। कश्यप ऋषि को सप्त ऋषियों में स्थान प्राप्त हुआ था। इनकी महान विद्वानता और धर्मपरायणता के द्वारा ही यह ऋषियों में सर्वश्रेष्ठ माने गए यह धार्मिक एवं रहस्यात्मक चरित्र वाले महान ऋषि थे।

      ऋषि कश्यप के नाम पर गोत्र का निर्माण हुआ है। यह एक बहुत व्यापक गोत्र है, जिसके अनुसार यदि किसी व्यक्ति के गोत्र का ज्ञान नहीं होता तो उसे कश्यप गोत्र का मान लिया जाता है और यह गोत्र कल्पना इस लिए कि जाती है क्योंकि एक परंपरा के अनुसार सभी जीवधारियों की उत्पत्ति कश्यप से हुई मानी गई है। अत: इस कारण कश्यप ऋषि को सृष्टि का जनक माना गया है।

      अग्रवंशी रघुवंश अग्रहरि

      अग्रवंशी एकता परिषद्
      भारत

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    4. जय श्री अग्रसेन

      अग्रकुल के गोत्र

      माता लक्ष्मी की कृपा से श्री अग्रसेन के 18 पुत्र हुये। राजकुमार विभु उनमें सबसे बड़े थे। महर्षि गर्ग ने महाराजा अग्रसेन को 18 पुत्र के साथ 18 यज्ञ करने का संकल्प करवाया। माना जाता है कि यज्ञों में बैठे 18 गुरुओं के नाम पर ही अग्रवंश की स्थापना हुई । यज्ञों में पशुबलि दी जाती थी। प्रथम यज्ञ के पुरोहित स्वयं गर्ग ॠषि बने, राजकुमार विभु को दीक्षित कर उन्हें गर्ग गोत्र से मंत्रित किया। इसी प्रकार दूसरा यज्ञ गोभिल ॠषि ने करवाया और द्वितीय पुत्र को गोयल गोत्र दिया। तीसरा यज्ञ गौतम ॠषि ने गोइन गोत्र धारण करवाया, चौथे में वत्स ॠषि ने बंसल गोत्र, पाँचवे में कौशिक ॠषि ने कंसल गोत्र, छठे शांडिल्य ॠषि ने सिंघल गोत्र, सातवे में मंगल ॠषि ने मंगल गोत्र, आठवें में जैमिन ने जिंदल गोत्र, नवें में तांड्य ॠषि ने तिंगल गोत्र, दसवें में और्व ॠषि ने ऐरन गोत्र, ग्यारवें में धौम्य ॠषि ने धारण गोत्र, बारहवें में मुदगल ॠषि ने मन्दल गोत्र, तेरहवें में वसिष्ठ ॠषि ने बिंदल गोत्र, चौदहवें में मैत्रेय ॠषि ने मित्तल गोत्र, पंद्रहवें कश्यप ॠषि ने कुच्छल गोत्र दिया। 17 यज्ञ पूर्ण हो चुके थे। जिस समय 18 वें यज्ञ में जीवित पशुओं की बलि दी जा रही थी, महाराज अग्रसेन को उस दृश्य को देखकर घृणा उत्पन्न हो गई। उन्होंने यज्ञ को बीच में ही रोक दिया और कहा कि भविष्य में मेरे राज्य का कोई भी व्यक्ति यज्ञ में पशुबलि नहीं देगा, न पशु को मारेगा, न माँस खाएगा और राज्य का हर व्यक्ति प्राणीमात्र की रक्षा करेगा। इस घटना से प्रभावित होकर उन्होंने क्षत्रिय धर्म को अपना लिया। अठारवें यज्ञ में नगेन्द्र ॠषि द्वारा नांगल गोत्र से अभिमंत्रित किया।

      ॠषियों द्वारा प्रदत्त अठारह गोत्रों को महाराजा अग्रसेन के 18 पुत्रों के साथ महाराजा द्वारा बसायी 18 बस्तियों के निवासियों ने भी धारण कर लिया एक बस्ती के साथ प्रेम भाव बनाये रखने के लिए एक सर्वसम्मत निर्णय हुआ कि अपने पुत्र और पुत्री का विवाह अपनी बस्ती में नहीं दूसरी बस्ती में करेंगे। आगे चलकर यह व्यवस्था गोत्रों में बदल गई जो आज भी अग्रवाल समाज में प्रचलित है।

      अठारह गोत्र

      महाराज अग्रसेन के 18 पुत्र हुए, जिनके नाम पर वर्तमान में अग्रवालों के 18 गोत्र हैं। ये गोत्र निम्नलिखित हैं: -
      गोत्रों के नाम

      ऐरन

      बंसल

      बिंदल

      भंदल

      धारण

      गर्ग

      गोयल

      गोयन

      जिंदल

      कंसल

      कुच्छल

      मधुकुल

      मंगल

      मित्तल

      नागल

      सिंघल

      तायल

      तिंगल

      अग्रहरियों का गोत्र

      अग्रोहा मे आक्रमण एवं मुगलों के अत्याचार से बचने के लिए जो 96 कुच्छल गोत्रीय अग्रवाल परिवार ने अग्रोहा त्याग कर इधर-उधर बस गए थे, उन्होंने अपनी पहचान छिपाने के लिए अपना मूल गोत्र भी छिपा लिया, तथा सभी ने एक ही गोत्र "कश्यप" बतलाना शुरू किया। मूल गोत्र छिपाने के कारण ही ये "गुप्त" भी कहलाने लगे, जो अंग्रेजोँ के शासनकाल मे 'गुप्ता' हो गया। गुप्त जातीय इतिहास के पृष्ठ 187 में भी 18 वें क्रम मे छियानवे का गोत्र कश्यप दिया हुआ है। अग्रहरि समुदाय का मूल गोत्र "कुच्छल" है, जो कि महाराज अग्रसेन द्रवारा बनाए गए अठारह गोत्रो मे से एक है। "कुच्छल" गोत्र के रिषी कश्यप है तथा कर्ण देव गोत्र के प्रमुख देवता का नाम हैं। इसीलिए अग्रहरि महाराजा श्री अग्रसेन जी को सदैव अपना कुल पूर्वज मानते आए हैं

      कश्यप गोत्र

      प्राचीन वैदिक काल के महान ॠषियों में से एक ऋषि थे कश्यप ऋषि। हिंदु धर्म के ग्रंथों में कश्यप ऋषि के बारे में विस्तार पूर्वक उल्लेख प्राप्त होता है, वेदों, पुराणों तथा अन्य संहिताओं में भी यह नाम बहुत प्रयुक्त हुआ है। कश्यप ऋषि को सप्त ऋषियों में स्थान प्राप्त हुआ था। इनकी महान विद्वानता और धर्मपरायणता के द्वारा ही यह ऋषियों में सर्वश्रेष्ठ माने गए यह धार्मिक एवं रहस्यात्मक चरित्र वाले महान ऋषि थे।

      ऋषि कश्यप के नाम पर गोत्र का निर्माण हुआ है। यह एक बहुत व्यापक गोत्र है, जिसके अनुसार यदि किसी व्यक्ति के गोत्र का ज्ञान नहीं होता तो उसे कश्यप गोत्र का मान लिया जाता है और यह गोत्र कल्पना इस लिए कि जाती है क्योंकि एक परंपरा के अनुसार सभी जीवधारियों की उत्पत्ति कश्यप से हुई मानी गई है। अत: इस कारण कश्यप ऋषि को सृष्टि का जनक माना गया है।

      अग्रवंशी रघुवंश अग्रहरि

      अग्रवंशी एकता परिषद्
      भारत

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    5. जय श्री अग्रसेन

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  4. Jab bihar jharkhand chhatishgarh aneko state me hum obc me aate hain to up me aisa kyo nhi koun si agrwal community humse shaadi karti hai to hum agrwalo me kaise wo to hame apne se neecha mante hain.aaj bhi purwanchal me agrhari community bahut garib hai isliye hum sabhi ko pryas karke anya rajyo ki tarah khud ko obc me shamil karwana chahiye

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  5. Chattisgarh m agrahari general caste m aate hai..aur hme kisi prakar ka reservation ni chaiye..agrawal hme kya mante h ye imp ni h, balki hamari community progress kre ye imp h

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    1. सही कहा आपने

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    2. जय अग्रसेनमहाराज जी
      उत्तमविचार शेर का बच्चा शेर ही होता है कोई माने अथवा ना माने

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  6. Mene Agrahari samaj pe bahut research ki hai. Or nishkarsh Ye hai ki Agrahari , Magaraja Agrasen ke vanshaj hai, Or agyanta ke karan, Agarwal samaj se hi alag hoke apni alag pehchan banayi hai.
    Me bharat ki Yuva pidhi se hu, Or Dukh ki baat ye hai ki aap log apne mul caste agarwal me sammilit hone ka prayas karne ki bajay apne swarth ke karan reservation ki icha rakhte hai.. Yha hame shayad ek jut hoker apni caste agrawal me sammilit hone ke liye aawaz uthani chaiye. Na ki or pradesh ko dekh kar apna star niche girane ka prayas..
    me bharat ki Yuva pidhi se hu or meri umar 25 saal hai, Hume apne aap ko kisi se kam nahi samajhna chaiye. Me reservation se mili naukari ko nakarti hu, Agar mujme koi baat hai to muje general se bhi naukari le sakti hai, Or muje uss par garv hoga.. Reservation Jati ke aadhar par nahi, Income ke aadhar par hona chaiye... Hum logo ne Jati ke naam par bht si galat baato ko protsahan diya hai.. Or me Nahi chahti ki Agrahariyo ko koi reservation ki zarurat hai.. Agarwal me sammilit na bhi ho to, kam se kam apne aap ko kamjor samajh kar apna star girane ke bare me nahi sochna chaiye..
    Me Chahti hu ki sabko ye pata ho ki hamare purvaj maharaja agrasen hai, Or uss par Garv kare. Garv kare ki hum unki santan hai.
    Jai Agrasen!

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    1. जय श्री अग्रसेन

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    2. Sahi kaha Apne par kuch log ssmajhte kaha hai samaj Ko todne me Lage rahte hai

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    3. बहुत अच्छे, जय अग्रसेन, जय अग्रवाल

      हम जब सभी बनियों को, यहाँ तक की अग्रवाल दस्सा समाज को भी अपना चुके हैं तो अग्रहारियों को क्यों नहीं

      योगेश गुप्ता (सिंगल, अग्रवाल)

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  7. आदरणीय ओम प्रकाश प्रवक्ता जी बहुत अच्छी समाज द्रोह की भूमिका निभा रहे हो आपको यह पता नहीं है कि आगरा का पूर्व नाम अग्रपुर था

    जो कभी अग्रोहा राजधानी के अंतर्गत आता था
    और अगर पुर महाराजा अग्रसेन के नाम पर ही जाना जाता था

    हालांकि यह कहना कठिन है कि वहां भी अग्रवंशीओं का ही वर्चस्व रहा होगा लेकिन आप भूल गए हमारे समाज के इतिहासकारों ने आज से नहीं सैकड़ों वर्ष पूर्व अपनी अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है कि अग्रहरी कुच्छल गोत्रीय है महाराजा अग्रसेन जी के पुत्र कर्ण चंद की शाखा से हैं जिन्होंने महर्षि कश्यप ऋषि को गुरु मानकर कुच्छल गोत्र का संकल्प लिया था

    आप जो समाज द्रोह की भूमिका निभा रहे हैं वह माफी योग्य नहीं

    ध्यान रहे समाज जागरूक हो चुका है आप जैसे समाज द्रोहीओं को समाज से बहिष्कार करने में देर नहीं लगेगी

    अग्रवंशी रघुवंश अग्रहरि

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  8. जय श्री अग्रसेन

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  9. अग्रसेन के वंशज है हम आगे बढ़ते जाएंगे
    अग्रवंश की सेवा में मिलकर हाथ बढ़ाएंगे

    जय श्री अग्रसेन
    अग्रवंशी रघुवंश अग्रहरि

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  10. Bade dukh ki baat hai aaj jb agrawalo me ladki ki kami aayi wo dusari caste me ladki dhudte hai chahe wo teli,kalwar,ya fir Agrahari ho koi fark nahi mere apne Anubhav ki bat kare to Agrawal business me Arahari se bahut aage hai,yehi vajah se ye Agrahari Ko piche ya Apne se niche samajhte hai unko Agrahari ka sb history maloom hai aaj paise ka daur hai baki Sb bakwas jai Agrasen ki.....

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  11. Sab bat sahi nahi hai
    Sahi kuchh aur hoga

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  12. मैं वरूण कुमार अग्रहरि (38 वर्ष) ने जब से होश संभाला है तब से हमारे माता-पिता और पूर्वज ने यही बताया है कि हम चक्रवर्ती सम्राट महाराजा श्री अग्रसेन जी के वंशज है। विभिन्न इतिहासकारों एवं पुस्तकों द्वारा इसकी पुष्टि भी की गई है, किन्तु समाज के कुछ व्यक्ति दिशा भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं जो कि सर्वथा अनुचित है। मै समाज के सम्मानित,जागरूक और जिम्मेदार व्यक्तिओ से अनुरोध करता हूँ कि उपरोक्त दिशा भ्रम की स्थिति में हस्तक्षेप कर समाज को सही दिशा में ले जाने का कष्ट करें। जिससे समाज पुनः एक सूत्र में बंध कर विकास की ओर अग्रसर हो सके।

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  13. अग्रहरी मुख्य रूप से कश्यप गोत्र लिखते हैं। कुछ परिवार भरद्वाज गोत्र भी लिखते हैं। बहुत कम संख्या में ऐसे परिवार भी हैं जो कश्यप और भरद्वाज गोत्र से अलग गोत्रों के नाम बताते हैं। परंतु इनमें से कोई भी अग्रवालों द्वारा बताए गए साढे 17 गोत्र वाले नहीं है। 1528 ईस्वी में बाबर ने राम जन्मभूमि मंदिर का विनाश करने का प्रयत्न किया उसमें वह सफल तो हुआ परंतु इस योजना को सफल करने में उसको 4.50 लाख सैनिकों का प्रयोग करना पड़ा जिसके विरुद्ध 174000 योद्धाओं को वीरगति प्राप्त हुई। श्री राम मंदिर के पुनरुद्धार करने के उद्देश्य माया और अकबर के समय में भी युद्ध होते रहे। इसी क्रम में 5 जनवरी 1659 खजुआ का युद्ध भी महत्वपूर्ण है। इन युद्धों में लाखों योद्धाओं ने वीरगति प्राप्त की। वीरगति प्राप्त करने वाले योद्धा अवध क्षेत्र (सरयू और हिमालय के बीच पूर्वीउत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार) के रजवाड़ों के द्वारा एकत्र किए गए थे । उस समय युद्ध में प्रायः क्षत्रिय ही भाग लेते थे। इस आधार पर यह कहा जा सकता है की गंगा और हिमालय की तलहटी के बीच में पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार के राज परिवारों ने युद्ध में भाग लिया। और वह वीरगति को प्राप्त हुए। उनके परिवारों (वृद्ध महिलायें और बच्चे) ने समाज में गुप्त होकर जीवन यापन किया। गुप्ता, साव, बनिया, शाह, महाजन, वैश्य कहलाए। कालांतर में इन्हें अग्रहरि नाम दे दिया गया। गंगा के उत्तर की ओर पाए जाने वाले अग्रहरी 5 जनवरी 1659 को औरंगजेब के विरुद्ध लड़ने वाले योद्धाओं के परिवार हैं। इस युद्ध में बुंदेलखंड के कुछ हिस्से से (बांदा) योद्धाओं ने भाग लिया था। फतेहपुर सहित फतेहपुर के पूर्व की ओर विंध्याचल पर्वत और हिमालय पर्वत के बीच का भाग अवध क्षेत्र कहलाता है। अवध क्षेत्र के अग्रहरिओं की 1891 की जनगणना के अनुसार 1000 से अधिक जनसंख्या वाले तत्कालीन जिलों पर दृष्टि डालिए (१)फतेहपुर,(२) बांदा, (३)मिर्जापुर, (४)बनारस, (५)शाहाबाद , (६)सारण (७)फैजाबाद, (८)रायबरेली, (९)प्रतापगढ़, (१०)सुल्तानपुर, (११)बस्ती, (१२)जौनपुर, (१३)गाजीपुर, (१४)आजमगढ़, (१५)गोरखपुर, (१६)चंपारण, (१७)मुजफ्फरपुर (१८)प्रयागराज (इलाहाबाद) (१९)पटना वर्तमान में अग्रहरी कहीं भी रह रहे हो परंतु उनके मूल निवास उपर्युक्त जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में ही पाए जाते हैं।

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  14. अग्रहरी मुख्य रूप से कश्यप गोत्र लिखते हैं। कुछ परिवार भरद्वाज गोत्र भी लिखते हैं। बहुत कम संख्या में ऐसे परिवार भी हैं जो कश्यप और भरद्वाज गोत्र से अलग गोत्रों के नाम बताते हैं। परंतु इनमें से कोई भी अग्रवालों द्वारा बताए गए साढे 17 गोत्र वाले नहीं है। 1528 ईस्वी में बाबर ने राम जन्मभूमि मंदिर का विनाश करने का प्रयत्न किया उसमें वह सफल तो हुआ परंतु इस योजना को सफल करने में उसको 4.50 लाख सैनिकों का प्रयोग करना पड़ा जिसके विरुद्ध 174000 योद्धाओं को वीरगति प्राप्त हुई। श्री राम मंदिर के पुनरुद्धार करने के उद्देश्य माया और अकबर के समय में भी युद्ध होते रहे। इसी क्रम में 5 जनवरी 1659 खजुआ का युद्ध भी महत्वपूर्ण है। इन युद्धों में लाखों योद्धाओं ने वीरगति प्राप्त की। वीरगति प्राप्त करने वाले योद्धा अवध क्षेत्र (सरयू और हिमालय के बीच पूर्वीउत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार) के रजवाड़ों के द्वारा एकत्र किए गए थे । उस समय युद्ध में प्रायः क्षत्रिय ही भाग लेते थे। इस आधार पर यह कहा जा सकता है की गंगा और हिमालय की तलहटी के बीच में पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार के राज परिवारों ने युद्ध में भाग लिया। और वह वीरगति को प्राप्त हुए। उनके परिवारों (वृद्ध महिलायें और बच्चे) ने समाज में गुप्त होकर जीवन यापन किया। गुप्ता, साव, बनिया, शाह, महाजन, वैश्य कहलाए। कालांतर में इन्हें अग्रहरि नाम दे दिया गया। गंगा के उत्तर की ओर पाए जाने वाले अग्रहरी 5 जनवरी 1659 को औरंगजेब के विरुद्ध लड़ने वाले योद्धाओं के परिवार हैं। इस युद्ध में बुंदेलखंड के कुछ हिस्से से (बांदा) योद्धाओं ने भाग लिया था। फतेहपुर सहित फतेहपुर के पूर्व की ओर विंध्याचल पर्वत और हिमालय पर्वत के बीच का भाग अवध क्षेत्र कहलाता है। अवध क्षेत्र के अग्रहरिओं की 1891 की जनगणना के अनुसार 1000 से अधिक जनसंख्या वाले तत्कालीन जिलों पर दृष्टि डालिए (१)फतेहपुर,(२) बांदा, (३)मिर्जापुर, (४)बनारस, (५)शाहाबाद , (६)सारण (७)फैजाबाद, (८)रायबरेली, (९)प्रतापगढ़, (१०)सुल्तानपुर, (११)बस्ती, (१२)जौनपुर, (१३)गाजीपुर, (१४)आजमगढ़, (१५)गोरखपुर, (१६)चंपारण, (१७)मुजफ्फरपुर (१८)प्रयागराज (इलाहाबाद) (१९)पटना वर्तमान में अग्रहरी कहीं भी रह रहे हो परंतु उनके मूल निवास उपर्युक्त जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में ही पाए जाते हैं।

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  15. अग्रहरी मुख्य रूप से कश्यप गोत्र लिखते हैं। कुछ परिवार भरद्वाज गोत्र भी लिखते हैं। बहुत कम संख्या में ऐसे परिवार भी हैं जो कश्यप और भरद्वाज गोत्र से अलग गोत्रों के नाम बताते हैं। परंतु इनमें से कोई भी अग्रवालों द्वारा बताए गए साढे 17 गोत्र वाले नहीं है। 1528 ईस्वी में बाबर ने राम जन्मभूमि मंदिर का विनाश करने का प्रयत्न किया उसमें वह सफल तो हुआ परंतु इस योजना को सफल करने में उसको 4.50 लाख सैनिकों का प्रयोग करना पड़ा जिसके विरुद्ध 174000 योद्धाओं को वीरगति प्राप्त हुई। श्री राम मंदिर के पुनरुद्धार करने के उद्देश्य माया और अकबर के समय में भी युद्ध होते रहे। इसी क्रम में 5 जनवरी 1659 खजुआ का युद्ध भी महत्वपूर्ण है। इन युद्धों में लाखों योद्धाओं ने वीरगति प्राप्त की। वीरगति प्राप्त करने वाले योद्धा अवध क्षेत्र (सरयू और हिमालय के बीच पूर्वीउत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार) के रजवाड़ों के द्वारा एकत्र किए गए थे । उस समय युद्ध में प्रायः क्षत्रिय ही भाग लेते थे। इस आधार पर यह कहा जा सकता है की गंगा और हिमालय की तलहटी के बीच में पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार के राज परिवारों ने युद्ध में भाग लिया। और वह वीरगति को प्राप्त हुए। उनके परिवारों (वृद्ध महिलायें और बच्चे) ने समाज में गुप्त होकर जीवन यापन किया। गुप्ता, साव, बनिया, शाह, महाजन, वैश्य कहलाए। कालांतर में इन्हें अग्रहरि नाम दे दिया गया। गंगा के उत्तर की ओर पाए जाने वाले अग्रहरी 5 जनवरी 1659 को औरंगजेब के विरुद्ध लड़ने वाले योद्धाओं के परिवार हैं। इस युद्ध में बुंदेलखंड के कुछ हिस्से से (बांदा) योद्धाओं ने भाग लिया था। फतेहपुर सहित फतेहपुर के पूर्व की ओर विंध्याचल पर्वत और हिमालय पर्वत के बीच का भाग अवध क्षेत्र कहलाता है। अवध क्षेत्र के अग्रहरिओं की 1891 की जनगणना के अनुसार 1000 से अधिक जनसंख्या वाले तत्कालीन जिलों पर दृष्टि डालिए (१)फतेहपुर,(२) बांदा, (३)मिर्जापुर, (४)बनारस, (५)शाहाबाद , (६)सारण (७)फैजाबाद, (८)रायबरेली, (९)प्रतापगढ़, (१०)सुल्तानपुर, (११)बस्ती, (१२)जौनपुर, (१३)गाजीपुर, (१४)आजमगढ़, (१५)गोरखपुर, (१६)चंपारण, (१७)मुजफ्फरपुर (१८)प्रयागराज (इलाहाबाद) (१९)पटना वर्तमान में अग्रहरी कहीं भी रह रहे हो परंतु उनके मूल निवास उपर्युक्त जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में ही पाए जाते हैं।

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  16. श्रीराम के वंशज के रूप में निम्नलिखित प्रमाण उपलब्ध हैं

    (१)हमारा समाज प्राय: कश्यप गोत्री है।
    (२)भारतवर्ष का अग्रहरी कहीं भी रहता हो , वह अवध क्षेत्र का मूल निवासी है
    (३) फैजाबाद (अयोध्या) में स्थित पच महला मंदिर का नामकरण हमारे पूर्वजों ने किया है उन्होंने अग्रहरी समाज को श्रीराम का वंशज माना है ।
    "अग्रहरी वैश्य वंशज : सीतारमण मंदिर"
    नाम मंदिर के पाषाण शीला पट्ट में लिखा हुआ है।
    (४)अग्रहरी समाज की संस्कृति अवधि है दूसरे शब्दों में श्रीराम समाज में रचे बसे हैं।
    (५) हमारे समाज की परंपराएं क्षत्रिय समाज से मिलती-जुलती हैं
    आदि,आदि

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    1. बिल्कुल झूठ बोल रहे हैं आप भगवान राम का गोत्र क्या था भगवान राम हमारे आराध्य हैं वह हमारे ही नहीं वरन पूरे हिंदुस्तान के हिंदुओं के आराध्य

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  17. आदरणीय ओम प्रकाश प्रवक्ता जी मूर्खता भरी बातें मत करिए स्वयं विवेक का इस्तेमाल करिए

    1 कश्यप गोत्र एक व्यापक गोत्र है पंडितों के अनुसार जिस व्यक्ति को अपना वंश और गोत्र पता ना हो वह कश्यप गोत्र कह और लिख सकता है क्योंकि इस गोत्र के लोग सभी जातियों में पाए जाते हैं


    2 भारतवर्ष में अग्रहरि कहीं भी रहता हो वह,अग्रोहारी ही है अर्थात "अग्रोहा का निवासी"

    3 अयोध्या में स्थित अग्रहरि वैश्य वंशज सीतारमण मंदिर
    बनवाने वाला चुकी अग्रोहारी , अग्रहरि थे इसलिए उन्होंने मंदिर के फ्रंट पर ऐसा लिखा, ऐसा लिखने से इसका मतलब यह नहीं होता है कि अग्रहरि कोई एकल व्यक्ति था या अग्रहरि कहीं का सम्राट था या अग्रहरि से वंश वृद्धि हुई हो, वह लोग भी अग्रसेन जी को अपना पूर्वज मानते हैं और प्रतिवर्ष महाराजा श्री अग्रसेन जी की (जयंती) जन्म उत्सव मनाया जाता है

    4 अग्रहरि समाज की संस्कृति रीति रिवाज पुणत: अग्रकुल की है जिसमें शादी विवाह से लेकर के त्योहारों तक वही रीति रिवाज देखने को मिलती है

    5 हमारे कुल पूर्वज महाराजा श्री अग्रसेन जी ने क्षत्रिय परंपराओं को परित्याग कर वैश्य परंपराओं को अपनाया था
    इसलिए हमारे पूर्वज महाराजा अग्रसेन जी समाजवाद के प्रथम प्रवर्तक भी कहे जाते हैं

    ओम प्रकाश जी आपका विवेक अब काम नहीं कर रहा है दूसरों की कही सुनी बातें आपके विवेक को सुन्य कर रही है कृपया दूसरों की कठपुतली बनकर ऐसी मानसिकता का परिचायक मत बनिए

    आपकी जैसी हरकत एक नादान बच्चा भी नहीं कर सकता है आप तो पढ़ लिख कर के भी अपने विवेक को दूसरे की कठपुतली बना रहे हैं

    जय श्री अग्रसेन

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    1. आदरणीय ओम प्रकाश प्रवक्ता जी मूर्खता भरी बातें मत करिए स्वयं विवेक का इस्तेमाल करिए

      1 कश्यप गोत्र एक व्यापक गोत्र है पंडितों के अनुसार जिस व्यक्ति को अपना वंश और गोत्र पता ना हो वह कश्यप गोत्र कह और लिख सकता है क्योंकि इस गोत्र के लोग सभी जातियों में पाए जाते हैं


      2 भारतवर्ष में अग्रहरि कहीं भी रहता हो वह,अग्रोहारी ही है अर्थात "अग्रोहा का निवासी"

      3 अयोध्या में स्थित अग्रहरि वैश्य वंशज सीतारमण मंदिर
      बनवाने वाला चुकी अग्रोहारी , अग्रहरि थे इसलिए उन्होंने मंदिर के फ्रंट पर ऐसा लिखा, ऐसा लिखने से इसका मतलब यह नहीं होता है कि अग्रहरि कोई एकल व्यक्ति था या अग्रहरि कहीं का सम्राट था या अग्रहरि से वंश वृद्धि हुई हो, वह लोग भी अग्रसेन जी को अपना पूर्वज मानते हैं और प्रतिवर्ष महाराजा श्री अग्रसेन जी की (जयंती) जन्म उत्सव मनाया जाता है

      4 अग्रहरि समाज की संस्कृति रीति रिवाज पुणत: अग्रकुल की है जिसमें शादी विवाह से लेकर के त्योहारों तक वही रीति रिवाज देखने को मिलती है

      5 हमारे कुल पूर्वज महाराजा श्री अग्रसेन जी ने क्षत्रिय परंपराओं को परित्याग कर वैश्य परंपराओं को अपनाया था
      इसलिए हमारे पूर्वज महाराजा अग्रसेन जी समाजवाद के प्रथम प्रवर्तक भी कहे जाते हैं

      ओम प्रकाश जी आपका विवेक अब काम नहीं कर रहा है दूसरों की कही सुनी बातें आपके विवेक को सुन्य कर रही है कृपया दूसरों की कठपुतली बनकर ऐसी मानसिकता का परिचायक मत बनिए

      आपके जैसी हरकत एक नादान बच्चा भी नहीं कर सकता है आप तो पढ़ लिख कर के भी अपने विवेक को दूसरे की कठपुतली बना रहे हैं

      जय श्री अग्रसेन

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  18. कोई मुझे यह बताएगा कि बिहार में अग्रवाल (मारवाडी) किस कैटेगरी में आता है ओबीसी या सामान्य plz अगर कोई जानता है तो बताये

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  19. आदरणीय अग्रहरि समाज के पाठक गण,नमस्कार
    आप सभी से अनुरोध है कि डा सत्यकेतु विद्यालंकार द्वारा लिखित अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास नामक पुस्तक गूगल से निकाल कर पढे़ जिसका प्रथम संस्करण 1938 में प्रकाशित हुआ था ।स्वतः आपकी आंखे खुलेगी। आपका ज्ञानवर्धन होगा।किसी के भावना या विचारों पर गंभीरतापूर्वक चिन्तन करें।किसी पर अभद्र टिप्पणी न करें।

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  20. यदि अग्रहरि समाज के भाइयों ने श्री परमेश्वरी लाल गुप्त द्वारा लिखित अग्रवाल जाति का विकास नामक पुस्तक जिसका प्रथम संस्करण का प्रकाशन 1942 में हुआ था पढ़ लिए होते तो पता चलता कि समाज के उत्पति के संदर्भ में विचारों में मतभेद स्वाभाविक है एक दूसरे के विचारों का तर्कपूर्ण खंडन करना ही उचित रास्ता है ना कि अभद्र टिप्पणी करना। जिनको यह पुस्तक पढ़ने की अभिलाषा हो वे पढ़नै के पश्चात प्रतिक्रिया दें।गूगल पर भी उपलब्ध है
    विन्देश्वर प्रसाद अग्रहरि
    सिगरौली म प्र

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  21. आदरणीय ओम प्रकाश अधिवक्ता जी और बिंदेश्वरी प्रसाद अग्रहरि जी आप दोनों अग्रहरी और अग्रवाल समाज के बहुत बड़े इतिहासकार है आप जैसे इतिहासकारों को सादर प्रणाम क्या आप दोनों मेरे एक प्रश्न का उत्तर देने में सक्षम है क्या आप दोनों अपने परिवार के ज्यादा नहीं 400 साल पहले के पूर्वज अपने दादा परदादा का नाम बताने की कृपा करेंगे तब तो मैं मान लूं कि आप दोनों बहुत ज्यादा इतिहास के बारे में जानकारी रखते हैं अगर आपको अपने पूर्वजों का इतिहास नहीं पता तो समाज में मतभेद मत उत्पन्न मत करो आप जैसे इतिहासकारों की वजह से आज हमारा समाज विभिन्न खंडों को बटा हैं
    और जब तक समाज में आप जैसे लोग रहेंगे हमारे समाज में एकता कायम करना कठिन है पर असंभव नहीं

    आर जे अग्रवाल

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  22. R J agrawal जी
    आप सामाजिक एकता की दुहाई देने से पहले
    परमेश्वरी लाल गुप्त द्वारा लिखित पुस्तक का अध्ययन कर लिए होते।मैं उक्त पुस्तक के अध्ययन से यही समझ पाया कि इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने अग्रवालों का महिमामंडन करने का प्रयास किया है। हो सकता है वह सफल भी रहा हो लेकिन मेरी समझ से यह कोई प्रामाणिक दस्तावेज नही है ना कोई इतिहास। इस पुस्तक के माध्यम से अग्रहरि समाज को दूषित एवं संकर जाति प्रमाणित करने की कुचेष्ठा की गई है और बहुत ही चतुराई एवं शब्दों की बाजीगरी से अपने आप को अलग रखने का प्रयास भी किया है।
    400 साल पहले के पूर्वजों के नाम तो लगभग 90 फीसदी लोग भी नही बता पायेंगे।यह तो हास्यास्पद एवं बचकाना प्रश्न है।
    सम्मानीय ओम प्रकाश"प्रवक्ता"जी,कुल के इतिहास का अन्वेषण रहे हैं एवं तथ्यपरक जानकारी आगे ला रहे हैं तो किसी को कष्ट नहीं होना चाहिए।यह कार्य कोई कर्मयोगी ही कर सकता है।मैं नमन करता हूँ इस महापुरुष का।

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    1. आदरणीय भाई साहब
      समाज पर शोध करना बहुत अच्छी बात है और होना भी चाहिए लेकिन इस बात को विशेष ध्यान रखना चाहिए अनादि काल से चली आ रही परंपरा को आज भी न पहुंचे और हमें सफलता मिलती रहे

      ओमप्रकाश प्रवक्ता जी जो कुछ कर रहे हैं वह समाज की मुख्यधारा से हटकर सरासर गलत है इन्होंने हमारे पूर्वजों द्वारा बताई हुई परंपरा को पूरी तरह ध्वस्त करने की चेष्टा की है एक सर्वे के अनुसार ओमप्रकाश प्रवक्ता जी की रिश्तेदारी अग्रहरि समाज में कम अदर जातियों में ज्यादा पाई जाती है अदर जातियों से घनिष्ठ रिश्ता रखने के लिए अपने समाज को नीचा दिखाने का कार्य कर रहे हैं आप डॉक्टर परमेश्वरी लाल गुप्त जी की बात कर रहे हैं तो यह सीधी सी बात है कि जो समाज अपनी पुस्तक लिखेगा वह अपने समाज का ही महिमामंडन करेगा और अग्रवाल तो 18 गोत्रों का ग्रुप है जिसमें अग्रहरि का भी गोत्र मौजूद है आपने अग्रहरि समाज द्वारा लिखित पुस्तकों को पढ़ने की भूल की है पहले अग्रणी समाज की पुस्तकें पढ़ें फिर इस विषय पर चर्चा करें ओमप्रकाश प्रवक्ता जी जो शोध कर रहे हैं वह समाज की लिंक से हटकर के हैं जो आज तक सफलता हाथ नहीं लगी और ना ही कभी लगेगी
      अग्रहरि निर्विवादित महाराजा श्री अग्रसेन जी का वंशज है यदि शोध करना ही है इस लिंक पर जाकर शोध करना चाहिए
      जो व्यक्ति अलग ट्राफिक पर जाकर समाज को गुमराह करें उसे कर्मयोगी नहीं अति महत्वकांक्षी स्वार्थयोगी कहते हैं

      ऐसे व्यक्ति का मैं घोर निंदा करता हूं

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    2. आदरणीय भाई साहब
      समाज पर शोध करना बहुत अच्छी बात है और होना भी चाहिए लेकिन इस बात को विशेष ध्यान रखना चाहिए अनादि काल से चली आ रही परंपरा को आंच भी न पहुंचे और हमें सफलता मिलती रहे

      ओमप्रकाश प्रवक्ता जी जो कुछ कर रहे हैं वह समाज की मुख्यधारा से हटकर सरासर गलत है इन्होंने हमारे पूर्वजों द्वारा बताई हुई परंपरा को पूरी तरह ध्वस्त करने की चेष्टा की है एक सर्वे के अनुसार ओमप्रकाश प्रवक्ता जी की रिश्तेदारी अग्रहरि समाज में कम अदर जातियों में ज्यादा पाई जाती है अदर जातियों से घनिष्ठ रिश्ता रखने के लिए अपने समाज को नीचा दिखाने का कार्य कर रहे हैं आप डॉक्टर परमेश्वरी लाल गुप्त जी की बात कर रहे हैं तो यह सीधी सी बात है कि जो समाज अपनी पुस्तक लिखेगा वह अपने समाज का ही महिमामंडन करेगा और अग्रवाल तो 18 गोत्रों का ग्रुप है जिसमें अग्रहरि का भी गोत्र मौजूद है आपने अग्रहरि समाज द्वारा लिखित पुस्तकों को पढ़ने की भूल की है पहले अग्रहरि समाज की पुस्तकें पढ़ें फिर इस विषय पर चर्चा करें ओमप्रकाश प्रवक्ता जी जो शोध कर रहे हैं वह समाज की लिंक से हटकर के हैं जो आज तक सफलता हाथ नहीं लगी और ना ही कभी लगेगी
      अग्रहरि निर्विवादित महाराजा श्री अग्रसेन जी का वंशज है यदि शोध करना ही है इस लिंक पर जाकर शोध करना चाहिए
      जो व्यक्ति अलग ट्राफिक पर जाकर समाज को गुमराह करें उसे कर्मयोगी नहीं अति महत्वकांक्षी स्वार्थयोगी कहते हैं

      ऐसे व्यक्ति का मैं घोर निंदा करता हूं

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  23. जय श्री अग्रसेन

    जिस प्रकार बंजर जमीन के बारे में किसान को जानकारी ना हो तो वहां की फसलें नष्ट हो जाती है

    इसी तरह
    जिस समाज को अपने इतिहास का ज्ञान ना हो तो वहां की नस्ले नष्ट हो जाती हैं

    अग्रवंशी एकता परिषद्~AEP

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